Tuesday, January 10, 2012

श्रीराम युग

हम भारतीय विश्व की प्राचीनतम सभ्यता के वारिस है तथा हमें अपने गौरवशाली इतिहास तथा उत्कृष्ट प्राचीन संस्कृति पर गर्व होना चाहिए। किंतु दीर्घकाल की परतंत्रता ने हमारे गौरव को इतना गहरा आघात पहुंचाया कि हम अपनी प्राचीन सभ्यता तथा संस्कृति के बारे में खोज करने की तथा उसको समझने की इच्छा ही छोड़ बैठे। परंतु स्वतंत्र भारत में पले तथा पढ़े-लिखे युवक-युवतियां सत्य की खोज करने में समर्थ है तथा छानबीन के आधार पर निर्धारित तथ्यों तथा जीवन मूल्यों को विश्व के आगे गर्वपूर्वक रखने का साहस भी रखते है। 

श्रीराम द्वारा स्थापित आदर्श हमारी प्राचीन परंपराओं तथा जीवन मूल्यों के अभिन्न अंग है। वास्तव में श्रीराम भारतीयों के रोम-रोम में बसे है। श्रीराम की कहानी प्रथम बार महर्षि वाल्मीकि ने लिखी थी। वाल्मीकि रामायण श्रीराम के अयोध्या में सिंहासनारूढ़ होने के बाद लिखी गई। महर्षि वाल्मीकि एक महान खगोलविद् थे। उन्होंने राम के जीवन में घटित घटनाओं से संबंधित तत्कालीन ग्रह, नक्षत्र और राशियों की स्थिति का वर्णन किया है। इन खगोलीय स्थितियों की वास्तविक तिथियां 'प्लैनेटेरियम साफ्टवेयर' के माध्यम से जानी जा सकती है। भारतीय राजस्व सेवा में कार्यरत पुष्कर भटनागर ने अमेरिका से 'प्लैनेटेरियम गोल्ड' नामक साफ्टवेयर प्राप्त किया, जिससे सूर्य/ चंद्रमा के ग्रहण की तिथियां तथा अन्य ग्रहों की स्थिति तथा पृथ्वी से उनकी दूरी वैज्ञानिक तथा खगोलीय पद्धति से जानी जा सकती है। इसके द्वारा उन्होंने महर्षि वाल्मीकि द्वारा वर्णित खगोलीय स्थितियों के आधार पर आधुनिक अंग्रेजी कैलेण्डर की तारीखें निकाली है। इस प्रकार उन्होंने श्रीराम के जन्म से लेकर 14 वर्ष के वनवास के बाद वापस अयोध्या पहुंचने तक की घटनाओं की तिथियों का पता लगाया है। इन सबका अत्यंत रोचक एवं विश्वसनीय वर्णन उन्होंने अपनी पुस्तक 'डेटिंग द एरा ऑफ लार्ड राम' में किया है। इसमें से कुछ महत्वपूर्ण उदाहरण यहां भी प्रस्तुत किए जा रहे है।


श्रीराम की जन्म तिथि 

महर्षि वाल्मीकि ने बालकाण्ड के सर्ग 18 के श्लोक 8 और 9 में वर्णन किया है कि श्रीराम का जन्म चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को हुआ। उस समय सूर्य,मंगल,गुरु,शनि व शुक्र ये पांच ग्रह उच्च स्थान में विद्यमान थे तथा लग्न में चंद्रमा के साथ बृहस्पति विराजमान थे। ग्रहों,नक्षत्रों तथा राशियों की स्थिति इस प्रकार थी-सूर्य मेष में,मंगल मकर में,बृहस्पति कर्क में, शनि तुला में और शुक्र मीन में थे। चैत्र माह में शुक्ल पक्ष नवमी की दोपहर 12 बजे का समय था। जब उपर्युक्त खगोलीय स्थिति को कंप्यूटर में डाला गया तो 'प्लैनेटेरियम गोल्ड साफ्टवेयर' के माध्यम से यह निर्धारित किया गया कि 10 जनवरी, 5114 ई.पू. दोपहर के समय अयोध्या के लेटीच्यूड तथा लांगीच्यूड से ग्रहों, नक्षत्रों तथा राशियों की स्थिति बिल्कुल वही थी, जो महर्षि वाल्मीकि ने वर्णित की है। इस प्रकार श्रीराम का जन्म 10 जनवरी सन् 5114 ई. पू.(7117 वर्ष पूर्व)को हुआ जो भारतीय कैलेण्डर के अनुसार चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि है और समय 12 बजे से 1 बजे के बीच का है।


श्रीराम के वनवास की तिथि 

वाल्मीकि रामायण के अयोध्या काण्ड (2/4/18) के अनुसार महाराजा दशरथ श्रीराम का राज्याभिषेक करना चाहते थे क्योंकि उस समय उनका(दशरथ जी) जन्म नक्षत्र सूर्य, मंगल और राहु से घिरा हुआ था। ऐसी खगोलीय स्थिति में या तो राजा मारा जाता है या वह किसी षड्यंत्र का शिकार हो जाता है। राजा दशरथ मीन राशि के थे और उनका नक्षत्र रेवती था ये सभी तथ्य कंप्यूटर में डाले तो पाया कि 5 जनवरी वर्ष 5089 ई.पू.के दिन सूर्य,मंगल और राहु तीनों मीन राशि के रेवती नक्षत्र पर स्थित थे। यह सर्वविदित है कि राज्य तिलक वाले दिन ही राम को वनवास जाना पड़ा था। इस प्रकार यह वही दिन था जब श्रीराम को अयोध्या छोड़ कर 14 वर्ष के लिए वन में जाना पड़ा। उस समय श्रीराम की आयु 25 वर्ष (5114- 5089) की निकलती है तथा वाल्मीकि रामायण में अनेक श्लोक यह इंगित करते है कि जब श्रीराम ने 14 वर्ष के लिए अयोध्या से वनवास को प्रस्थान किया तब वे 25 वर्ष के थे।


खर-दूषण के साथ युद्ध के समय सूर्यग्रहण 


वाल्मीकि रामायण के अनुसार वनवास के 13 वें साल के मध्य में श्रीराम का खर-दूषण से युद्ध हुआ तथा उस समय सूर्यग्रहण लगा था और मंगल ग्रहों के मध्य में था। जब इस तारीख के बारे में कंप्यूटर साफ्टवेयर के माध्यम से जांच की गई तो पता चला कि यह तिथि 5 अक्टूबर 5077 ई.पू. ; अमावस्या थी। इस दिन सूर्य ग्रहण हुआ जो पंचवटी (20 डिग्री सेल्शियस एन 73 डिग्री सेल्शियस इ) से देखा जा सकता था। उस दिन ग्रहों की स्थिति बिल्कुल वैसी ही थी, जैसी वाल्मीकि जी ने वर्णित की- मंगल ग्रह बीच में था-एक दिशा में शुक्र और बुध तथा दूसरी दिशा में सूर्य तथा शनि थे।


अन्य महत्वपूर्ण तिथियां


किसी एक समय पर बारह में से छह राशियों को ही आकाश में देखा जा सकता है। वाल्मीकि रामायण में हनुमान के लंका से वापस समुद्र पार आने के समय आठ राशियों, ग्रहों तथा नक्षत्रों के दृश्य को अत्यंत रोचक ढंग से वर्णित किया गया है। ये खगोलीय स्थिति श्री भटनागर द्वारा प्लैनेटेरियम के माध्यम से प्रिन्ट किए हुए 14 सितंबर 5076 ई.पू. की सुबह 6:30 बजे से सुबह 11 बजे तक के आकाश से बिल्कुल मिलती है। इसी प्रकार अन्य अध्यायों में वाल्मीकि द्वारा वर्णित ग्रहों की स्थिति के अनुसार कई बार दूसरी घटनाओं की तिथियां भी साफ्टवेयर के माध्यम से निकाली गई जैसे श्रीराम ने अपने 14 वर्ष के वनवास की यात्रा 2 जनवरी 5076 ई.पू.को पूर्ण की और ये दिन चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की नवमी ही था। इस प्रकार जब श्रीराम अयोध्या लौटे तो वे 39 वर्ष के थे (5114-5075)

Tuesday, December 20, 2011

आज किसे गाली बकें?


साईबेरिया के ठंढे प्रदेश में अदालत अपने देश के संस्था को चौबीस घंटे का समय देती है यह तय करने के लिये कि चार हज़ार साल पुरानी दैवीय वाणी को आतंकवादी घोषित किया जाय या नहीं . . . यहाँ हमारे देश भारत में हमारे न्यायालय और अधिकारी सैंतीस सालों बाद भी यह फैसला नहीं कर पाते हैं कि इंसान का खून हुआ था या कि वह एक दुर्घटना में मारा गया था . . .

Monday, December 19, 2011

क्या गीता आतंकवादी साहित्य हो सकती है?


गीता के किसी अनुवाद पर चाहे वो कैसा भी अनुवाद . . . कितना भी बुरा अनुवाद हो . . . आतंकवाद/ अतिवाद/ गैर सामाजिक गतिविधि को समर्थन/ प्रश्रय देने के साहित्य के आरोप का खतरा हर भारतीये के लिये एक सदमा है (भारतीय में हिंदू/ ईसाई/ मुसलमान सभी शामिल हैं).

हिंदू (सनातन, जैन, बौद्ध, सिख, तथा अन्य कई जो इस धरती पर पनपी और जिस सब में मानव के स्वतंत्र और निर्विघ्न वैचारिक प्रवाह और उस प्रवाह का  सर्वोच्च महत्त्व, सबसे महत्वपूर्ण समानता है) धर्म, पिछले ढाई हज़ार सालों से अधिनायकवादी विचारों के अनुयाईयों के आघात को झेलता रहा है. जब हम सुरक्षित होते हैं (मसलन जब हमें जजिया कर नहीं देना होता है), स्वतंत्र होते हैं, आत्म निर्भर होते हैं, तो हमारे विचारों के सामने कोई टिक नहीं सकता . . .  यह बार बार . . . हर बार प्रमाणित हुआ है . . . उसका प्रमाण आज भी दुनिया के हर देश में है . . . तब भी हुआ था जब शिकागो में अठारह सितम्बर अठारह सौ तिरानवे को जिह्वा की ज्वाला ने सभागार को लील लिया था . . . लेकिन जब हमारे सिरमौर का सर कलम हो चुका हो . . . जब हम रोजी रोटी की तलाश में दूसरों के सामने हों . . . ऐसे लोगों के सामने जो यह कहते हों की सिर्फ उनके सर्वशक्तिमान के द्वारा भेजा हुआ दूत (भूत) सच बोलता था . . . और जो उस सच को नहीं दुहरायेगा वह पापी है  . . . जो उस सच को नहीं मानेगा वह नरक जाएगा . . . उसे सजा मिलेगी . . . और उस सज़ा के इन्तेज़ार में वो “आखीरी दिन” का इन्तेज़ार कर रहे हैं . . . तो हिंदू धर्म की मजबूती हीं  कमजोरी हो जाती है . . . एक अधिनायकवादी विचार का अभाव . . .

“सभी मुझी से जन्म लेते हैं” . . . सभी मुझी में समा जाते हैं” . . . “मैं हीं सारे सजीव और निर्जीव प्राणी को नियंत्रित करता हूँ” . . . ऐसा स्पष्ट संवाद गीता के पहले हिंदू साहित्य में कहीं नहीं है . . .

बहुत बार पौराणिक पुस्तकों को समझना बहुत मुश्किल होता है . . . यह बात भारतीय धार्मिक वक्ता अपने भाषण से पहले अक्सर बोळ देते हैं . . . नहीं भी बोलें तो भारतीय श्रोता यह जानते हैं की सामने वाले की कितनी बात अपनी जेब में भर कर घर ले जाना है . . . और यह समझदारी आज के युग में और भी जरूरी हो जाता है जब शासक से लेकर व्यापार तक हर चीज़ का अपने लाभकारी अंदाज़ में व्याख्या करवाने और प्रचारित करवाने में जुटा है . . . भारत की धरती  के लोग जहाँ सर्वशक्तिमान इश्वर कई बार जन्म ले चुके हैं . . . लोगों को राह बतलाने के लिये . . . इन बातों को भली भाँती समझते हैं . . . लेकिन जब हममें से किसी का मुकाबला ऐसे प्राणी से हो जाए जो यह कहता हो की रात को जो उसके कमरे में भूत आया था सिर्फ वही सच बोलता है . . . तो फिर हमारे पास गीता सबसे अच्छी और बल प्रदान करने वाला साहित्य है जो कहता है की “सिर्फ मैं सत्य हूँ”

और हाँ यह तो कहना भूल हीं गया . . . हमारा सर्वशक्तिमान वो नहीं है जो गीता में बोलता है . . . हमारा देव गीता खुद है . . . गीता जी देव हैं . . . और कोई नहीं . . .

ISKCON उनलोगों की संस्था है जो ऐसे मनोवैज्ञानिक संघर्ष में शामिल हैं . . . आज की तारीख में वो हिंदू धर्म की अग्रणी पंक्ति है . . . यदी उनका कोई साहित्य किसी ऐसे को जो सभ्यता के प्रारंभ से भूत प्रेत के कहने पर मानवीय बौद्धिक क्षमता को तलवार का गुलाम बनाकर सर्वशक्तिमान को आकार देने की मानवीय कल्पना का भी तलवार से शमन का हामी हो . . . जिसे संसार के सभी मनुष्य की जेब बराबर पैसे हों या सभी को बराबर रूप से भिखारी बना  दिया जाय . . . ऐसे विचारों की सनक का दौरा परता हो . . . ऐसे किसी को यदी गीता जी अतिवाद का जरिया लगता हो तो मुझे कोई आश्चर्य नहीं है . . . क्यूंकि वे सदियों से अतिवादी हीं रहे हैं . . . और गीता जी में उनेंह अपने से दो कदम आगे का दर्शन हो रहा है . . . गीता जी अतिवादी नहीं हैं . . . यह उनके अंदर का अतिवादी है जो डर रहा है . . .

Sunday, November 27, 2011

पुलिस और मीडिया के नाम खुला पत्र

मैं उन्नीस से अधिक वर्षों से तमिलनाडु में रहता हूँ पिछले 21 वर्षों से देश में चारों ओर यात्राएं कर रहा हूँ. मुझे लगता है कि अपने दम पर रहने वाले किसी भी व्यक्ति को (बिना लाल बत्ती कि गाड़ी और आगे पीची कमांडो के) इस बात का अहसास होगा कि हमारे देश में सामाजिक ताने - बाने काफी कमजोर हैं. आज राज ठाकरे से लेकर शीला दीक्षित क, लोग उत्तर भारतीयों / हिंदी वालों खास कर बिहारियों की गर्दन तलाशते रहते हैं. तमिलनाडु में हिंदी भाषी लोगों की हालत किसी से छिपी नहीं है. अकसर विभिन्न शैक्षिक संस्थानों में छात्रों के बीच राज्यों के आधार पर झगड़े की मीडिया में रिपोर्ट आती रहती है.
आज टाइम्स ऑफ इंडिया, चेन्नई संस्करण में मुख पृष्ठ पर एक समाचार के शीर्षक का हिंदी अनुवाद है - "7 बिहारी छात्र आतंकी लिंक के लिए गिरफ्तार". मैं अंदर की कहानी के बारे में टिप्पणी नहीं करना चाहूँगा क्यूंकि मैं पुलिस या प्रेस को अपमानित नहीं होते देखना चाहता (गौर तलब है कि जिस  व्यक्ति को वे गिरफ्तार करना चाहते थे वह भाग गया और वह दिल्ली से आया था!), लेकिन यह पूरी तरह (मुझे यकीन है कि पुलिस आम जनता को दी गयी जानकारी के मूल्य को समझते हैं) पुलिस और प्रेस द्वारा एक खराब प्रस्तुति और एक समयपूर्व प्रेस विज्ञप्ति है.

प्रस्तुति से, यह प्रतीत होता है कि पड़ोसियों ने परेशान होकर (बिहारी अपने अशिष्ट व्यवहार के लिए कुख्यात रहे हैं - एक बिहारी होने के कारण मैंने खुद अनुभव किया है) छात्रों खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई है और पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया है . . .

इसके अलावा, हम सब जानते हैं कि बिहारी कोई पहचान नहीं है, जैसे कोई धर्म या कबीले या जाति या भाषा नहीं है जिसे "बिहारी" कहा जाता है. ऐसी स्थिति में, ऐसे बदनाम खबर के लिए एक राज्य के नाम का उल्लेख सिर्फ लापरवाही है जो प्रेस में जिम्मवार पड़ पर आसीन व्यक्ति की अज्ञानता बतलाती है. यदि वे गिरफ्तार लोगों के नाम, पता छापते, तो बात और होती.

अतीत में मैंने दो उत्तर भारतीयों ने यात्रा खराब की" जैसे शीर्षक में समाचार पढ़ा है जब दवा का उपयोग कर सहयात्रियों को लूटने की रिपोर्ट छापी थी (एक अन्य समाचार पत्र द्वारा), और मैं यह भी जानता है कि तमिलनाडु में ऐसी प्रस्तुति सड़क किनारे . . . चाय कि दुकानों पर . . . लोगों द्वारा पसंद की जाती है और चाव से चर्चा की जाती है और यह भी कि मेरी इस लेखन की वजह से बंद यह सब बंद नहीं होने वाला है क्यूंकि यह बिजनेस देता है. फिर भी आदतन, मैंने तमिलनाडु पुलिस (शिकायत संख्या: E11CHI609) तथा टाइम्स ऑफ इंडिया के संपादक को लिखा है और आप सबके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ.